मध्याह्न भोजन योजना (मिड डे मील)
भूमिका
अधिक
छात्रों के नामांकन और अधिक छात्रों की नियमित उपस्थिति के संबंध में स्कूल
भागीदारी पर मध्याह्न भोजन कामहत्वपूर्ण प्रभाव पङता है। अधिकतर बच्चे खाली पेट
स्कूल पहुंचते हैं। जो बच्चे स्कूल आने से पहले भोजन करते हैं उन्हें भी
दोपहर तक भूख लग आती है और वे अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते हैं।
मध्याह्न भोजन बच्चों के लिए ''पूरक पोषण'' के स्रोत और उनके स्वस्थ विकास के रूप
में भी कार्य कर सकता है। यह समतावादी मूल्यों के प्रसार में भी
सहायता कर सकता है क्योंकि कक्षा में विभिन्न सामाजिक पृष्ठभूमि वाले बच्चे
साथ में बैठते हैं और साथ-साथ खाना खाते हैं। विशेष रूप से मध्याह्न भोजन
स्कूल में बच्चों के मध्य जाति व वर्ग के अवरोध को मिटाने में सहायता कर
सकता है। स्कूल
की भागीदारी में लैंगिक अंतराल को भी यह कार्यक्रम कम कर सकता है क्योंकि यह
बालिकाओं को स्कूल
जाने से रोकने वाले अवरोधों को समाप्त करने में भी सहायता करता है। मध्याह्न भोजन स्कीम
छात्रों के ज्ञानात्मक, भावात्मक
और सामाजिक विकास में मदद करती है। सुनियोजित मध्याह्न भोजन को बच्चों में
विभिन्न अच्छी आदते डालने के अवसर के रूप में उपयोग में लाया जा सकता है। यह
स्कीम महिलाओं
को रोजगार के उपयोगी स्रोत भी प्रदान करती है।
मध्याह्न
भोजन स्कीम देश के 2408 ब्लॉकों
में एक केन्द्रीय प्रायोजित स्कीम के रूप में 15 अगस्त, 1995 को आरंभ की गई थी। वर्ष 1997-98 तक यह कार्यक्रम देश के सभी ब्लाकों में
आरंभ कर
दिया गया। वर्ष 2003 में
इसका विस्तार शिक्षा गारंटी केन्द्रों और वैकल्पिक व नवाचारी शिक्षा केन्द्रों
में पढ़ने वाले बच्चों तक कर दिया गया। अक्तूबर, 2007 से इसका देश के शैक्षणिक रूप से पिछड़े 3479
ब्लाकों में कक्षा VI से VIII में पढने वाले बच्चों तक विस्तार कर
दिया गया है। वर्ष
2008-09 से यह कार्यक्रम देश
के सभी क्षेत्रों में उच्च प्राथमिक स्तर पर पढने वाले सभी बच्चों के लिए कर दिया
गया है। राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना विद्यालयों को भी
प्रारंभिक स्तर पर मध्याह्न भोजन योजना के अंतर्गत 01.04.2010
से शामिल किया गया है।
कार्यक्रम के उद्देश्य
इस
स्कीम के लक्ष्य भारत में अधिकांश बच्चों की दो मुख्य समस्याओं अर्थात् भूख और
शिक्षा का इस प्रकार समाधान करना है :-
(i) सरकारी
स्थानीय निकाय और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल और ईजीएस व एआईई केन्द्रों तथा सर्व शिक्षा अभियान
के तहत सहायता प्राप्त मदरसों एवं मकतबों में कक्षा I से VIII के बच्चों के पोषण स्तर में सुधार करना
(ii) लाभवंचित
वर्गों के गरीब बच्चों को नियमित रूप से स्कूल आने और कक्षा के कार्यकलापों पर ध्यान
केन्द्रित करने में सहायता करना, और
(iii) ग्रीष्मावकाश
के दौरान अकाल-पीडि़त क्षेत्रों में प्रारंभिक स्तर के बच्चों को पोषण सम्बन्धी
सहायता प्रदान करना।
केन्द्रीय सहायता के संघटक
इस
समय मध्याह्न भोजन स्कीम राज्य सरकारों/संघ राज्य क्षेत्र प्रशासनों को
निम्नलिखित के लिए सहायता प्रदान करती हैः-
(i) प्राथमिक
कक्षाओं के बच्चों के लिए 100
ग्राम प्रति बच्चा प्रति स्कूल दिवस की दर से और उच्च प्राथमिक कक्षाओं के बच्चों के
लिए 150 ग्राम प्रति
बच्चा प्रति स्कूल दिवस की दर से भारतीय खाध निगम
के निकटस्थ गोदाम से निःशुल्क खाद्यान्न (गेहूं/चावल) की आपूर्ति। केन्द्र सरकार भारतीय खाद्य
निगम को खाद्यान्न की लागत की प्रतिपूर्ति करती है।
(ii) 11 विशेष
श्रेणी वाले राज्यों (अर्थात-अरूणाचल
प्रदेश, असम, मेघालय, मिजोरम, मणिपुर, नागालैंड, सिक्किम, जम्मू व कश्मीर, हिमाचल प्रदेश उत्तराखण्ड और त्रिपुरा)
के लिए दिनांक 1.12.2009 से
इनमें प्रचलित पी.डी.सी. दरों के अनुसार परिवहन सहायता। अन्य
राज्यों तथा संघ
राज्य क्षेत्रों के लिए 75/-रू.
प्रति क्विंटल की अधिकतम सीमा के अधीन भारतीय खाद्य निगम से
प्राथमिक स्कूल तक खाद्यान्न के परिवहन में हुई वास्तविक लागत की प्रतिपूर्ति।
(iii) दिनांक
1.12.2009 से भोजन पकाने की लागत (श्रम और प्रशासनिक प्रभार को छोङकर)
प्राथमिक बच्चों के लिए 2.50 रूपए
की दर से और उच्च प्राथमिक बच्चों के लिए 3.75 रूपए की दर से प्रदान की जाती है और दिनांक
1.4.2010 तथा दिनांक 1.4.2011
को इसे पुनः 7.5 प्रतिशत तक बढ़ाया गया है। भोजन पकाने
की लागत की केन्द्र और पूर्वोत्तर राज्यों के मध्य हिस्सेदारी 90:10
के आधार पर है और अन्य राज्यों/संघ राज्यों के साथ 75:25 के आधार पर वहन की जाएगी। तद्नुसार
केन्द्र की हिस्सेदारी
और राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों की न्यूनतम हिस्सेदारी वर्ष 2010-11 के लिए इस प्रकार हैः-
स्तर
|
प्रति
भोजन कुल लागत
|
गैर-पूर्वोत्तर
राज्य (75:25)
|
पूर्वोत्तर
राज्य (90:10)
|
||
केन्द्र
|
राज्य
|
केन्द्र
|
राज्य
|
||
प्राथमिक
|
2.69 रू.
|
2.02 रू.
|
0.67 रू.
|
2.42 रू.
|
0.27 रू.
|
उच्च
प्राथमिक
|
4.03 रू.
|
3.02 रू.
|
1.01 रू.
|
3.63 रू.
|
0.40 रू.
|
भोजन
पकाने की लागत में दालों, सब्जियों,
भोजन पकाने के तेल और मिर्च-मसालों,
ईंधन इत्यादि की लागत शामिल है।
(iv) पूरे
देश में किचन-कम-स्टोर के निर्माण की प्रति विद्यालय 60,000 रूपएकी एक समान दर के स्थान पर दिनांक 1.12.2009
से निर्माण लागत को कुरसी क्षेत्र मानदण्डों और
राज्य/संघ राज्य क्षेत्रों में प्रचलित राज्य अनुसूची दरों के आधार पर निर्धारित किया जाना
है। किचन-कम-स्टोर की निर्माण
लागत की
हिस्सेदारी केन्द्र और पूर्वोत्तर राज्यों के मध्य 90:10 आधार पर तथा अन्य राज्यों के साथ 75:25 के आधार पर की जाएगी। इस विभाग ने
दिनांक 31.12.2009 के
अपने पत्र संख्या 1-1/2009-डेस्क
(एम.डी.एम.) के जरिए 100 बच्चों
तक स्कूलों में किचन-कम-स्टोर के निर्माण हेतु 20 वर्ग मी० का क्षेत्र निर्धारित किया है। प्रत्येक
अतिरिक्त 100
बच्चों तक के लिए 4 वर्ग
मीटर अतिरिक्त कुरसी क्षेत्र जोड़ा जाएगा। राज्यों/संघ राज्य
क्षेत्रों को अपनी
स्थानीय दशाओं के आधार पर 100 बच्चों
के स्लैब को संशोधित
करने का अधिकार होगा।
(v) 5000 रूपए
प्रति विद्यालय की औसत लागत के आधार पर किचन के सामान प्राप्त करने के लिए सहायता दी जाती है।
किचन के सामान में निम्नलिखित शामिल हैं:-
- भोजन पकाने का सामान (स्टोव, चूल्हा इत्यादि)
- खाद्यान्न और अन्य सामान को स्टोर करने के लिए कंटेनर
- भोजन पकाने और वितरित करने के बर्तन।
(vi) दिनांक
1.12.2009 से रसोइये-कम-सहायक को
प्रदान किए जाने वाले मानदेय को 1000 रूपए प्रतिमाह करना और 25 विद्यार्थियों वाले विधालयों में एक रसोइये-कम-सहायक,
26 से 100 विद्यार्थी वाले विद्यालयों में दो
रसोइये-कम-सहायक और अतिरिक्त प्रत्येक 100 विद्यार्थियों तक के लिए एक अतिरिक्त रसोइये-कम-सहायक की
नियुक्ति करना।
रसोइये-कम-सहायक को प्रदान किए जाने वाले मानदेय के लिए केन्द्र सरकार और राज्यों के
मध्य हिस्सेदारी पूर्वोत्तर राज्यों के लिए 90:10 तथा अन्य राज्यों/संघ राज्य क्षेत्रों के
लिए 75:25 के आधार पर होगी।
(vii) राज्यों/संघ
राज्य क्षेत्रों के लिए इस स्कीम के प्रबंधन, अनुवीक्षण तथा मूल्यांकन (एम.एम.ई.) के
लिए सहायता
(क) खाद्यान्न, (ख)
परिवहन लागत और (ग) भोजन पकाने की लागत (घ) रसोइया-सह-सहायक को मानदेय के लिए कुल
सहायता का 1.8 प्रतिशत,
(क)खाद्यान्न, (ख) परिवहन लागत और (ग) भोजन पकाने की
लागत (घ) रसोइया-सह-सहायक
को मानदेय की कुल सहायता के 0.2 प्रतिशत
का उपयोग राष्ट्रीय
स्तर पर प्रबंधन, अनुवीक्षण
तथा मूल्यांकन उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
वर्ष
2011-12 के लिए `10380 करोड़ के परिव्यय का प्रस्ताव दिया
गया था |
अद्यतन स्थिति
गैर
सरकारी संगठनों को (एनजीओ) आउट सोर्स करना
मानव
संसाधन विकास राज्यमंत्री डॉ. शशि थरूर ने राज्य सभा में यह जानकारी दी
कि शहरी क्षेत्रों में विद्यालय प्रांगणों में जहां गैर सरकारी
संगठनों/ट्रस्टों/केंद्रीयकृत रसोइयों जो कि बच्चों को भोजन उपलब्ध कराने में
संलग्न हैं, के
लिए रसोई-सह-भंडार के लिए स्थान नहीं है। मंत्री महोदय ने कहा कि वहां इस महत्वपूर्ण योजना में मिड डे मील की आपूर्ति को गैर
सरकारी संगठनों को (एनजीओ) आउट सोर्स किया जा रहा है।
उन्होंने
कहा कि मिड डे मील के दिशा निर्देश पंचायतीराज संस्थानों, स्वयं सहायता समूहों, माता संगठनों और स्थानीय समाज की सहायता से मिड डे मील
को रसोइये-सह-सहायक की सहायता से स्कूल के रसोई-सह-भंडार में पकाने पर
जोर देते हैं। वर्तमान वर्ष 2013-14 में देश भर में इस कार्यक्रम में 447 गैर सरकारी संगठन संलग्न हैं। इस कार्यक्रम में काम कर
रहे गैर सरकारी संगठनों की सबसे ज्यादा संख्या उत्तर प्रदेश और कर्नाटक में क्रमश: 185 और 102 है।
इस
कार्यक्रम के अंतर्गत संलग्न गैर सरकारी संगठनों के लिए सरकार द्वारा निर्धारित
मानदण्ड के संबंध में एक अन्य प्रश्न का उत्तर देते हुए मंत्री महोदय ने कहा कि मिड डे मील
दिशा निर्देशों के अनुसार संलग्न गैर सरकारी संगठनों के मानदण्ड निम्न
प्रकार है--
(i) गैर
सरकारी संगठन को आपूर्ति कार्य आवंटित करने का निर्णय सरकार द्वारा
अधिकारित संस्था लेगी जैसे ग्राम पंचायत, वीईसी/एसएमसी/पीटीए, म्युनिसिपल कमेटी/कॉरपोरेशन आदि।
एजेंसी को सोसायटी
एक्ट के तहत अथवा सार्वजनिक ट्रस्ट एक्ट के तहत पंजीकृत होना चाहिए और यह कम से कम
पिछले दो वर्षों से अस्तित्व में होनी चाहिए। इसके पास समूचित रूप से गठित
प्रबंधक/प्रशासकीय ढांचा होना चाहिए, जिसके कार्यों और अधिकारों इसके संविधान में स्पष्ट
उल्लेख हो।
(ii) गैर
सरकारी संगठन और स्थानीय निकाय के मध्य होने वाले अनुबंध/समझौते में
पक्षों का उत्त्रदायित्व और प्रदर्शन न करने पर उनके प्रतिफल
परिभाषित होने चाहिए। बच्चों के लिए गैर सरकारी संगठन द्वारा आपूर्ति किए जा रहे
भोजन की मात्रा और गुणों की जांच और निरीक्षण की सख्त व्यवस्था का
होना भी इसमें शामिल होना चाहिए।
(iii) चयनित
मिड डे मील आपूर्तिकर्ता बगैर किसी लाभ के आधार पर आपूर्ति करेगा
और कार्यक्रम अथवा उसके किसी सहायक हिस्से का उप ठेका किसी अन्य को नहीं
सौंपेगा।
(iv) इस
प्रकार की मिड डे मील योजनाओं में संलग्न गैर सरकारी संगठन के
प्रदर्शन का मूल्यांकन प्रत्येक वर्ष एक विश्वसनीय मूल्यांकन व्यवस्था के
माध्यम से होना चाहिए। गैर सरकारी संगठन के साथ हुए समझौते का अगले वर्ष
के लिए नवीनीकरण वर्तमान वर्ष में उसके प्रदर्शन के संतोषजनक पाए जाने पर
निर्भर होना चाहिए।
एनजीओ
द्वारा नियम तोड़े जाने के मामलों का विवरण देते हुए डॉ शशि थरूर ने कहा
कि मिड डे मील के नियमों के उल्लंघन की छह शिकायतें मंत्रालय की जानकारी में
आई हैं। इन शिकायतों को संबंधित राज्यों को जांच और इन पर रिपोर्ट करने
के लिए भेज दिया गया था। ऐसे चार मामलों में राज्य सरकारों में संबंधित
गैर सरकारी संगठनों के बिलों से अनुपाति उगाही की है।
मध्याह्न भोजन योजना का नवीनीकरण
बारहवीं योजना के दौरान मध्याह्न भोजन योजना (एमडीएमएस) का निम्न प्रकार से सुधार
करने का प्रस्ताव है:-
- (मध्याह्न भोजन योजना का जनजाति, अनुसूचित जाति और अल्पसंख्यक बहुल जिलों के गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में विस्तार।
- प्राथमिक विद्यालयों की परिसरों में स्थित पूर्व-प्राइमरी कक्षाओं में पढ़ने वाले बच्चों के लिए भी इस योजना का विस्तार।
- मौजूदा घटकों या स्कूलों के लिए सहायता के तौर तरीकों का संशोधन।
- मध्याह्न भोजन मूल्य सूचकांक का विशेष रूप से मध्याह्न भोजन की वस्तुओं के मूल्य पर आधारित खाने की लागत का संशोधन।
- उत्तर-पूर्वी प्रदेश (एनईआर) को छोड़कर अन्य राज्यों के लिए माल वहन सहायता का संशोधन। इसका 75 रुपये प्रति क्विन्टल की मौजूदा सीमा को बढ़ाकर 150 रुपया प्रति क्विन्टल की गई है।
- वर्ष 2013-14 और 2014-15 के दौरान रसोइया-सहायकों का मानदेय 1000 रुपये से बढ़ाकर 1500 रुपया और वर्ष 2015-16 तथा 2016-17 के दौरान रसोइया-सहायक का मानदेय 2000 रुपये प्रति माह किया गया है।
- खाद्यान्न लागत, खाना पकाने की लागत, माल वहन सहायता तथा रसोइया-सहायक को मिलने वाले मानदेय के लिए कुल पुनरावर्ती केन्द्रीय सहायता के तीन प्रतिशत की दर से प्रबंधन निगरानी और मूल्यांकन दरों का संशोधन।
- नये स्कूलों के लिए किचन की बर्तन खरीदने और हर पांच साल बाद किचन के बर्तनों को बदलने के लिए 15000 रुपये प्रति स्कूल की दर से केन्द्रीय सहायता की पद्धति का संशोधन। सहायता की यह राशि केन्द्र और राज्यों के बीच 75:25 के अनुपात से और उत्तर-पूर्वी प्रदेश के राज्यों में 90:10 के अनुपात से वहन की जाएगी।
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और मध्याह्न भोजन योजना का एकीकरण
मानव
संसाधन विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के प्रभावी
कार्यान्वयन के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन के साथ समन्वय के उद्देश्य से सभी
राज्यों के शिक्षा विभागों को लिखा है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम केंद्र
सरकार की नई पहल
है जिसका उद्देश्य जन्म से 18 वर्ष
की आयु के बच्चों की जांच और प्रबंध करना है। इसके तहत जन्म के समय
त्रुटियों, कमियों, बीमारियों, बच्चे के विकास में देरी सहित विकलांगता का
प्रबंध करना भी शामिल है।
वर्तमान
वित्त वर्ष 2013-14 के
दौरान स्कूली बच्चों सहित कुल 3 करोड़
45 लाख बच्चों की इस योजना के तहत जांच की गई। स्वास्थ्य समस्या
वाले करीब 12 लाख
बच्चों की पहचान की गई तथा स्वास्थ्य केंद्र रैफर किए गए।
राज्यों
के दौरे के दौरान मध्याह्न भोजन योजना के लिए संयुक्त
समीक्षा मिशनों ने राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के कार्यान्वयन की समीक्षा की है।
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के प्रतिनिधि इस संबंध में समुचित समन्वय
सुनिश्चित करने के लिए मध्याह्न भोजन योजना की संरचना में संलग्न
है।
मिड डे मील योजना में सुधार
देशभर
में राज्य/केन्द्रशासित प्रदेशों में मिड डे मील योजना के अंतर्गत 25.70
लाख रसोईया – सहायकों को काम दिया गया। इन सहायकों को
इस कार्य
के लिए मानदेय को संशोधित कर 01 दिसंबर,
2009 से एक हजार रुपये प्रति माह कर दिया
गया तथा साल में कम से कम दस महीने कार्य दिया गया। इस कार्य के लिए रसोईया-सहायको को दिए जाने
वाले मानदेय का खर्च केन्द्र अैर पूर्वोत्तर राज्यों के बीच 90:10 के औसत में उठाया गया, जबकि अन्य राज्यों/केन्द्रशासित प्रदेशों तथा
केन्द्र के बीच यह औसत 25:75
तय किया गया।
यदि राज्य/केन्द्रशासित प्रदेश चाहे तो इस कार्य में किए जाने वाले खर्च में योगदान निर्धारित
अनुपात से अधिक भी कर सकते हैं।
केन्द्र
सरकार रसोईया-सहायकों के प्रशिक्षण की मद में 100 प्रतिशत राशि प्रबंधन, निगरानी और मूल्यांकन के लिए देती है।
इस योजना को वर्ष 2009-10 में संशोधन किया गया है। योजना के अंतर्गत भोजन तैयार करने के लिए वर्ष
2010-11 से प्रत्येक वर्ष
खर्च में
साढ़े सात प्रतिशत वृद्धि का प्रावधान किया गया। इस खर्च में अंतिम बार 01 जुलाई, 2014 को वृद्धि की गई।
मध्याह्न
भोजन योजना के अधीन प्रति छात्र रसोई की लागत बढ़ाई
गई मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति इरानी ने बताया कि मध्याह्न भोजन योजना के अधीन प्रति छात्र आने वाली रसोई की
लागत को 01 जुलाई, 2014 से निम्नानुसार बढ़ाया गया है:-
(रूपये)
स्तर
|
प्रति
छात्र प्रतिदिन रसोई लागत
2013-14
|
प्रति
छात्र प्रतिदिन संशोधित रसोई लागत
2014-15
|
प्राथमिक
|
3.34
|
3.59
|
उच्च
प्राथमिक
|
5.00
|
5.38
|
प्रति
छात्र रसोई लागत वर्ष 2010-11 से
प्रतिवर्ष 7.5 प्रतशित
की दर
से बढ़ाई गई है। सभी सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों को 01 अप्रैल, 2008 से मध्याह्न योजना के अधीन उच्च
प्राथमिक (कक्षा-6 से
कक्षा-8) स्तर तक शामिल किया
गया है।
मध्याह्न
भोजन योजना स्कूल में भोजन उपलब्ध कराने की सबसे
बड़ी योजना है जिसमें रोजाना सरकारी सहायता प्राप्त
11.58 लाख से भी अधिक
स्कूलों के 10.8 करोड़
बच्चे शामिल हैं।
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